संविदा कर्मचारियों की किस्मत चमकी, हाई कोर्ट ने दिया रेगुलर करने का आदेश Contract Employees Regularization News

Contract Employees Regularization News – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविदा (Contract) पर काम कर रहे कर्मचारियों के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट का साफ-साफ कहना है कि अगर कोई कर्मचारी सालों से लगातार एक ही विभाग में अपनी सेवाएं दे रहा है, तो उसे सरकारी सेवा में नियमित (Regular) किए जाने से रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय से काम कर रहे संविदा कर्मियों को रेगुलर करना न सिर्फ उनका अधिकार है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत समान अवसर का हिस्सा भी है।

आगरा के माली कर्मचारियों की याचिका बनी मिसाल

इस मामले की शुरुआत आगरा के एक सरकारी उद्यान (सरकारी गार्डन) में माली के तौर पर काम कर रहे महावीर सिंह और उनके साथियों की याचिका से हुई थी। ये सभी कर्मचारी 1998 से 2001 के बीच संविदा पर रखे गए थे और तब से अब तक लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने साल 2016 में जारी एक अधिसूचना के तहत रेगुलर होने के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनका आवेदन खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया। पहले एकल पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन फिर उन्होंने विशेष अपील दायर की।

कोर्ट ने दिया चयन समिति को नया निर्देश

महावीर सिंह और उनके साथियों की इस विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने चयन समिति को निर्देश दिया कि वह सभी याचिकाकर्ताओं की बात को ध्यानपूर्वक सुने और नियमित करने के विषय पर नए सिरे से विचार करे। कोर्ट ने ये भी कहा कि संविदा पर सालों से काम कर रहे लोगों को रेगुलर किए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता, खासकर जब उन्होंने बिना किसी रुकावट के अपनी सेवाएं दी हों।

लगातार सेवा है सबसे बड़ा आधार

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह बात भी साफ कही कि अगर कोई कर्मचारी निरंतर सेवा देता है और उसके काम में कोई कृत्रिम अवकाश या जानबूझकर रोका गया ब्रेक नहीं है, तो उसे रेगुलर किए जाने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन होगा। अनुच्छेद 16 के अनुसार हर नागरिक को सरकारी सेवा में समान अवसर मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्मचारियों की सेवा को सिर्फ इस आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि वे संविदा पर हैं।

नियमों में है लचीलापन, लेकिन नियोक्ता की मंशा भी जरूरी

कोर्ट ने अपने आदेश में यह बात भी जोड़ी कि संविदा कर्मचारियों को रेगुलर करने के लिए कुछ नियम हैं, परंतु अगर कर्मचारी लगातार काम करता रहा है और उसका कार्य प्रदर्शन संतोषजनक रहा है, तो नियमों में इस बात की गुंजाइश है कि उन्हें रेगुलर किया जा सके। यह भी जरूरी है कि नियोक्ता ने जानबूझकर या नीति के तहत उन्हें रेगुलर न करने का कोई कारण न बनाया हो।

संविधान भी करता है समर्थन

कोर्ट के इस फैसले के पीछे संविधान का आधार भी मजबूत है। अनुच्छेद 16 सिर्फ नौकरी पाने के मौके की बात नहीं करता, बल्कि नौकरी में समानता का भी अधिकार देता है। अगर एक कर्मचारी सालों तक बिना रुके काम करता है तो उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। संविदा पर होने के बावजूद उसकी सेवाएं अगर लगातार रही हैं तो उसे भी बाकी स्थायी कर्मचारियों जैसा ही दर्जा मिलना चाहिए।

इस फैसले का असर पूरे प्रदेश में

इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों को राहत मिल सकती है। इससे लाखों ऐसे कर्मचारी जो वर्षों से सेवा दे रहे हैं, लेकिन आज भी अस्थायी स्थिति में हैं, उन्हें रेगुलर नौकरी मिलने का रास्ता खुल सकता है।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला संविदा कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत है। यह फैसला बताता है कि अगर आप लगातार और ईमानदारी से अपनी सेवाएं दे रहे हैं तो आपको सरकार की ओर से स्थायी दर्जा पाने से कोई नहीं रोक सकता। यह निर्णय न केवल संविदा कर्मचारियों की उम्मीदों को नई उड़ान देगा, बल्कि सरकारी विभागों में भी कर्मचारियों की स्थिति में बदलाव लाएगा।

डिस्क्लेमर

यह लेख सूचना के आधार पर तैयार किया गया है, इसका उद्देश्य सिर्फ जनहित में जानकारी देना है। इसमें दी गई जानकारी कोर्ट के आदेशों और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी प्रकार की कानूनी राय या अधिकारिक प्रक्रिया के लिए संबंधित विभाग या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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