SC Decision On Check Bounce : आजकल ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का जमाना है, लेकिन फिर भी लोग चेक से पेमेंट करना पसंद करते हैं। यह एक सुरक्षित तरीका माना जाता है, लेकिन अगर चेक बाउंस हो जाए तो देने वाले और लेने वाले दोनों की परेशानी शुरू हो जाती है। मामला धीरे-धीरे कोर्ट तक पहुंच जाता है और फिर कानूनी दांव-पेंच में फंसने के बाद लोगों को कोर्ट के चक्कर काटने पड़ते हैं।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है, जिससे लोगों को राहत मिल सकती है। कोर्ट ने कहा है कि अगर दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौता कर लेते हैं, तो कोर्ट को जल्द से जल्द मामला निपटा देना चाहिए। इससे न सिर्फ लोगों को बार-बार कोर्ट आने-जाने की परेशानी से बचाया जा सकता है, बल्कि कोर्ट का कीमती समय भी बच सकेगा।
चेक बाउंस के मामले क्यों बढ़ रहे हैं?
चेक बाउंस का मामला आमतौर पर तब सामने आता है, जब किसी के बैंक अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस नहीं होता, या फिर तकनीकी कारणों से बैंक चेक को क्लियर नहीं करता। कई बार जानबूझकर भी लोग बिना बैलेंस के चेक जारी कर देते हैं, जिससे लेने वाले को परेशानी होती है।
चेक बाउंस होना कानूनन अपराध है और इसमें सजा भी हो सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब जो फैसला दिया है, उससे साफ है कि अगर दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है, तो सजा देने के बजाय मामले को खत्म करना ज्यादा बेहतर होगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: समझौते को दें प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने एक चेक बाउंस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए तैयार हैं, तो कोर्ट को मामले को जल्दी निपटा देना चाहिए। इससे लोगों को कोर्ट के लंबे-लंबे चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे और न्याय व्यवस्था पर भी कम दबाव पड़ेगा।
देशभर की अदालतों में चेक बाउंस के लाखों मामले लंबित हैं, जिससे कोर्ट पर अनावश्यक बोझ बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर समझौते के आधार पर इन मामलों को सुलझाया जाए, तो न्याय प्रणाली अधिक प्रभावी हो सकती है।
कोर्ट ने सजा क्यों रद्द की?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने एक चेक बाउंस मामले में आरोपी को दी गई सजा को रद्द कर दिया। दरअसल, इस मामले में दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से समझौता कर लिया था और शिकायतकर्ता को 5 लाख रुपये से अधिक की राशि का भुगतान कर दिया गया था। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि जब समझौता हो चुका है, तो सजा देने का कोई मतलब नहीं बनता।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अन्य चेक बाउंस मामलों में भी यही तरीका अपनाया जाना चाहिए। अगर आरोपी शिकायतकर्ता को पूरी रकम चुका देता है और दोनों पक्ष सहमत हैं, तो कोर्ट को तुरंत केस बंद कर देना चाहिए।
कोर्ट के फैसले से क्या बदलेगा?
- जल्द निपटारे की राह खुलेगी – कोर्ट ने साफ किया है कि चेक बाउंस के मामलों में लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए समझौते को प्राथमिकता दी जाए।
- लोगों को राहत मिलेगी – अब लोगों को बार-बार कोर्ट के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, जिससे समय और पैसे की बचत होगी।
- कोर्ट का बोझ कम होगा – देशभर में लाखों चेक बाउंस के मामले लंबित हैं, अगर समझौते के आधार पर इन्हें निपटाया जाए तो अदालतों पर दबाव कम होगा।
- व्यापारियों और आम जनता के लिए फायदेमंद – यह फैसला उन व्यापारियों और आम लोगों के लिए राहत भरा है, जो चेक बाउंस मामलों में फंस जाते हैं और कानूनी दांव-पेंच में उलझ जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ सजा देने पर जोर देने के बजाय कोर्ट को मामलों को निपटाने पर फोकस करना चाहिए। अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए तैयार हों, तो बिना देर किए मामला खत्म कर देना चाहिए।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि समझौता तभी हो सकता है जब दोनों पक्ष इसके लिए सहमत हों और शिकायतकर्ता को उसका पूरा भुगतान मिल जाए।
क्या करना चाहिए अगर चेक बाउंस हो जाए?
अगर आपका चेक बाउंस हो जाता है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। आप निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं:
- चेक दोबारा जमा कराएं – कई बार चेक तकनीकी कारणों से बाउंस हो सकता है, इसलिए इसे दोबारा जमा कराने का विकल्प अपनाएं।
- चेक जारी करने वाले से संपर्क करें – अगर आपका चेक बाउंस हो गया है, तो चेक जारी करने वाले व्यक्ति से बातचीत करें और समाधान निकालें।
- कानूनी नोटिस भेजें – अगर समझौता नहीं हो पाता है, तो आप चेक जारी करने वाले को लीगल नोटिस भेज सकते हैं।
- कोर्ट में केस दर्ज करें – अगर चेक जारी करने वाला भुगतान करने से मना कर देता है, तो आप कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद समझौते को प्राथमिकता दी जाएगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चेक बाउंस मामलों में फंसे लोगों के लिए राहत भरा है। अब अगर दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौता कर लेते हैं, तो केस लंबा नहीं चलेगा और सजा की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। इससे आम जनता और न्यायपालिका दोनों को फायदा होगा।
अगर आपका चेक बाउंस होता है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। पहले आपसी बातचीत से हल निकालने की कोशिश करें। अगर समझौता हो जाता है, तो कोर्ट भी इसे जल्द निपटा देगी। यह फैसला कोर्ट के समय की बचत करेगा और लोगों को कानूनी उलझनों से भी बचाएगा।